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<poem>
क्या बताऊं कैसा कैसे ख़ुद को दर-ब-दर मैंने किया,
उम्र भर किस-किस के हिस्से का सफ़र मैंने किया ।
तू तो नफ़रत भी न कर पाएगा इतनी उस शिद्दत <ref> अति,तनमन्यता</ref> के साथ,
जिस बला का प्यार तुझसे बे-ख़बर मैंने किया ।
कैसे बच्चों को बताऊं बताऊँ रास्तों के पेचो-ख़म,<ref> घुमाव-फिराव</ref>
ज़िन्दगी भर तो किताबों का सफ़र मैंने किया ।
शोहरतों <ref> प्रसिद्धि </ref> की नज़्र <ref> भेंट</ref> कर दी शेर शे’र की मासूमियत,इस दीये दिये की रोशनी को दर-ब-दर मैंने किया ।
चंद जज़्बाती जज़्बातों से रिश्तों के बचाने को ‘वसीम‘,कैसा-कैसा जब्र <ref> अत्याचार</ref> अपने आप पर मैंने किया ।
शिद्दत: अति,पेचो-ख़म: घुमाव- फिराव,नज़्र: भेंट, उपहार,जब्र: ज़ोर-ज़बर्दस्ती </poem>{{KKMeaning}}