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क्या बताऊं कैसा ख़ुद को दर-ब-दर मैंने किया / वसीम बरेलवी
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हेमंत जोशी (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:36, 24 जून 2009 का अवतरण
क्या बताऊं कैसे ख़ुद को दर-ब-दर मैंने किया,
उम्र भर किस-किस के हिस्से का सफ़र मैंने किया ।
तू तो नफ़रत भी न कर पाएगा इतनी शिद्दत1 के साथ,
जिस बला का प्यार तुझसे बे-ख़बर मैंने किया ।
कैसे बच्चों को बताऊं रास्तों के पेचो-ख़म2,
ज़िन्दगी भर तो किताबों का सफ़र मैंने किया ।
शोहरतों की नज़्र3 कर दी शेर की मासूमियत,
इस दिये की रोशनी को दर-ब-दर मैंने किया ।
चंद जज़्बातों से रिश्तों के बचाने को ‘वसीम‘,
कैसा-कैसा जब्र4 अपने आप पर मैंने किया ।
1. शिद्दत: अति, 2. पेचो-ख़म: घुमाव- फिराव, 3. नज़्र: भेंट, उपहार, 4. जब्र: ज़ोर-ज़बर्दस्ती