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क्या बतायें खु़द को' यूँ बरबाद करते रह गए / सत्याधर 'सत्या'

क्या बतायें खु़द को' यूँ बरबाद करते रह गए
उम्र भर इक शख़्स की इम्दाद करते रह गए

चन्द ग़ज़ले लिखके' उनको शोहरतें हासिल हुई
और हम बस दर्द का अनुवाद करते रह गए

रास्ते उनके ग़लत फिर भी उन्हे मंजिल मिली
हम थे' कि इक फाख़्ता आजाद करते रह गए

रौशनी उतरी नहीं मेरे दर-ओ-दीवार पर
आफताबे - नूर से फरयाद करते रह गए

एक चेहरा जो मे'री आँखों में' घर करता रहा
सिर्फ उस चेहरे को' 'सत्या' याद करते रह गए