क्या बसाया तुम्हें निगाहों में
खो गया मैं तो सर्द आहों में
आप और इजतिराब मेरे लिए
ये असर और मेरी आहों में
मौत भी छुप के बैठी रहती है
ज़िन्दगी की हसीन राहों में
कुछ हिसाबे-गुनह नहीं मुझको
कट गई ज़िन्दगी गुनाहों में
इक नज़र देखना था शर्त 'अंजान'
बस गये वो मेरी निगाहों में।