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|रचनाकार=अहमद नदीम काज़मीक़ासमी
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[[Category:ग़ज़ल]]
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क्या भरोसा हो किसी हमदम का
 
चांद उभरा तो अंधेरा चमका
 
सुबह को राह दिखाने के लिए
 
दस्ते-गुल में है दीया शबनम का
 
मुझ को अबरू, तुझे मेहराब पसन्द
 
सारा झगड़ा इसी नाजुक ख़म का
 
हुस्न की जुस्तजू-ए-पैहम में
 
एक लम्हा भी नहीं मातम का
 
मुझ से मर कर भी न तोड़ा जाए
 
हाय ये नशा ज़मीं के नम का
 
दस्ते-गुल= फूल के हाथ; अबरू= भौंह; ख़म= टेढ़ापन; जुस्तजू-ए-पैहम=ख़ूबसूरती की लगातार चलने वाली चर्चा
</poem>
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