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क्या रक्खा अब यार गाँव में / धीरज श्रीवास्तव

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क्या रक्खा अब यार गाँव में!
नहीं रहा जब प्यार गाँव में!

बड़कन के दरवाजे पर है
खूँटा गड़ा बुझावन का!
 फोड़ दिया सर कल्लू ने कल
 अब्दुल और खिलावन का!
 गली-गली में बैर भाव बस
 मतलब का व्यवहार गाँव में!
 क्या रक्खा अब यार गाँव में!
 नहीं रहा जब प्यार गाँव में!

बेटी की लुट गई आबरू
बूढ़ा श्याम अभी जिन्दा!
 देख बेबसी बेचारे की
 मजा ले रहा गोविन्दा!
 सच का है मुँह धुआँ-धुआँ बस
 झूठों का अधिकार गाँव में!
 क्या रक्खा अब यार गाँव में!
 नहीं रहा जब प्यार गाँव में!

टूट चुकी मर्यादा सारी
बिगड़ों पर प्रतिबन्ध नहीं!
 गौरी भोला चिनगुद में भी
 पहले-सा सम्बन्ध नहीं!
 चोर-उचक्के बने चौधरी
 घूम रहे मक्कार गाँव में!
 क्या रक्खा अब यार गाँव में!
 नहीं रहा जब प्यार गाँव में!