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"क्या वह भी अरमान तुम्हारा / जानकीवल्लभ शास्त्री" के अवतरणों में अंतर
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मुक्त विहग नभ चढ़ कर गाता | मुक्त विहग नभ चढ़ कर गाता | ||
पर जो जकड़ा द्वंद्व-बन्ध में,- | पर जो जकड़ा द्वंद्व-बन्ध में,- | ||
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बादल देख हृदय भर आया | बादल देख हृदय भर आया | ||
− | 'दो दो-बूँद' कहा, दुलराया ; | + | 'दो दो-बूँद' कहा, दुलराया; |
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नीरव तम, निशीथ की बेला, | नीरव तम, निशीथ की बेला, | ||
मरु पथ पर मैं खड़ा अकेला | मरु पथ पर मैं खड़ा अकेला | ||
सिसक-सिसक कर रोता है, जो - | सिसक-सिसक कर रोता है, जो - | ||
− | क्या वह भी प्रिय गान तुम्हारा ? | + | क्या वह भी प्रिय गान तुम्हारा? |
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14:15, 18 मई 2015 के समय का अवतरण
क्या वह भी अरमान तुम्हारा?
जो मेरे नयनों के सपने,
जो मेरे प्राणों के अपने ,
दे-दे कर अभिशाप चले सब-
क्या यह भी वरदान तुम्हारा ?
खुली हवा में पर फैलाता,
मुक्त विहग नभ चढ़ कर गाता
पर जो जकड़ा द्वंद्व-बन्ध में,-
क्या वह भी निर्माण तुम्हारा?
बादल देख हृदय भर आया
'दो दो-बूँद' कहा, दुलराया;
पर पपीहरे ने जो पाया, -
क्या वह भी पाषाण तुम्हारा?
नीरव तम, निशीथ की बेला,
मरु पथ पर मैं खड़ा अकेला
सिसक-सिसक कर रोता है, जो -
क्या वह भी प्रिय गान तुम्हारा?