भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्या हासिल हुआ, बता ऐ मेरे दिल / आर्थर रैम्बो / मदन पाल सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्या हासिल हुआ, बता ऐ मेरे दिल :
लहू का सैलाब, दहकती-उड़ती राख का मंज़र, क़त्ल-ओ-गारत हुए हज़ारों लोग,
छाती चीरने वाला विलाप, सारे जहन्नुम की तबाही-भरी सिसकियाँ
और मलबों पर अभी तक बहती उत्तरी हवा !!

और यह सब बदले की आग ! मिला कुछ नहीं !
लेकिन हाँ ! इसके बाद भी हमें सब कुछ चाहिए —
उद्योग-धन्धे और उनके सरमायेदार, राजवंश-औ-राजकुमार, सभा-परिषदें ।
ताक़त, इंसाफ़, इतिहास सब हो जाएँ दोजख़ में ग़ारत।
लहू और क्रान्ति की सुनहरी लपटें – ये हक़ है हमारा और नाज़िल है हम पर।

सब कुछ जंग, बदले और दहशत के लिए !
मेरी आत्मा मुड़ जा दर्द ओ ज़ख़्मों की तरफ़, और दफ़ा हो जाओ –
इस दुनिया की जमूहरियतें, गुलाम बनाने वाली ताक़तें,
बादशाहत, जनता और पलटन.
बस, बहुत हो गया !!

कौन भड़काएगा आग की लपटें और शोले, कोई और नहीं, बस
हमारे और उनके सिवा, जिन्हें हम समझते हैं भाई-बन्धु
हमारे ख़ुशगवार दोस्तो, होगी हमें इससे भी ख़ुशी
हम नहीं करेंगे कभी भी मेहनत-मशक्कत, ओ आग की लपटो !

मिट जाएँगे यूरोप, एशिया और अमेरिका
हमारे बदले की आग ने सब कुछ घेर लिया है – देहात और शहर.
हम कुचले जाएँगे और होंगे सुपुर्द-ए-ख़ाक
फट जाएँगे ज्वालामुखी, और दरिया कर देंगे तबाही की हद पार…

मेरे दोस्तो ! मेरे दिल-ए-सुख़न
यह सच है कि वे हमारे भ्राता-भाई काले अजनबी,
चलो चलें – चलो आगे बढ़ो, आओ !!
दुर्भाग्य, काँप रहा हूँ मैं थरथर, यह पुरानी धरती
पिघलती हुई मुझपर छाती जा रही है

मूल फ़्रांसीसी भाषा से अनुवाद : मदन पाल सिंह