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क्या हुआ, पीछे अगर शिकवा-गिला करते हैं लोग / श्याम कश्यप बेचैन

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क्या हुआ, पीछे अगर शिकवा-गिला करते हैं लोग
सामने तो गर्मजोशी से मिला करते हैं लोग

पास आते ही सभी पत्थर के हो जाते हैं क्यों
दूर से मानिन्द पर्दों के हिला करते हैं लोग

आदमी से प्यार करने के लिए कहता हूँ जब
पास के थाने में जाकर इत्तिला करते हैं लोग

वे हमेशा से फहरते ही रहे हैं आज तक
रुख़ हवाओं के समझ कर जो हिला करते हैं लोग

गाड़ देते हैं वहीं इंसानियत की लाश को
जिस जगह से कूच अपना क़ाफ़िला करते हैं लोग

है कहाँ अपनी ज़मीं, जुड़ कर कहें जिससे ग़ज़ल
आजकल तो सिर्फ गमलों में खिला करते हैं लोग