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क्या हुआ उपवन में‚ क्यों सारे शजर लड़ने लगे / हरेराम समीप

क्या हुआ उपवन में‚ क्यों सारे शजर लड़ने लगे
आँधियाँ कैसी हैं‚ जो ये घर से घर लड़ने लगे

एक ही मंजिल है उनकी‚ एक ही है रास्ता
क्या सबब फिर हमसफ़र से हमसफ़र लड़ने लगे

भ्रष्टता का बाँध यूँ तो एहतियातन ठीक था
किन्तु जब टूटा तो फिर सारे मगर लड़ने लगे

एक तो मौसम की साज़िश मेरे घर बढ़ती गई
फिर हवा यूँ तेज़ आई‚ बामो-दर लड़ने लगे

मेरा साया तेरे साए से बड़ा होगा‚ इधर
बाग़ में इस बात पर दो गुलमुहर लड़ने लगे

एक ही ईश्वर है सबका और है सबके समीप
बंदगी कैसी हो‚ बस इस बात पर लड़ने लगे