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क्या है तुम्हारा फैसला ? / पारस अरोड़ा

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इतना अंधेरा
कि चारों दिशाएं लुप्त
इतना उजियारा
कि आंखें चुंधिया जाए
बोल, बता मित्र
अब क्या कहता है-
दृष्टि डालने के लिए
कौनसी जगह शेष है ?
ऐसा करते हैं हम
बांध कर इस उजाले की पोटली
रख लें कांधे पर
अंधेरे को आमंत्रित करें
धर कूंचा… धर मंजला… चलें
चीर दें अंधेरे को
घर-घर बांटे
पोटली में रखा उजाला
इस लम्बी राह में खा-खाकर ठोकरें
पैरों में हौसला नहीं रहता
लेकिन टूटेगा नहीं
अब यह पाहाड़ सा पक्का फैसला
बोलो बताओ-
क्या है तुम्हारा फैसला ?

अनुवाद : नीरज दइया