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क्यूँ कीचक-कीचक करती है, उस कीचक से क्यूँ डरती है / ललित कुमार

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क्यूँ कीचक-कीचक करती है, उस कीचक से क्यूँ डरती है,
दुःख-दर्दा मै होई बावली, नैना नीर क्यूँ भरती है,
क्या करलेगा कीचक दान्ना, मै उसकी बणाद्यूं ढेरी,
तू महल मै जा सिंगार उठाल्या, बात मानले मेरी || टेक ||

तू करदे नै सिंगार मेरा, यो बहू बणै भरतार तेरा,
पार्वती का लिया देख चेहरा, वो भस्मासुर नै घाल्या घेरा,
जब विष्णु नै पाट्या बेरा, उसनै धरया मोहनी रूप नचेरी ||

जिसनै भी तकी बीर परायी, उनके सिर चढ़गी करड़ाई,
उस ब्रह्मदेव नै करी हंघायी, चंद्रावती पै नीत डिगाई,
शिवजी नै त्रिशूल उठाई, काट्या शीश ना लायी देरी ||

मै नृतशाळा म्य जाऊँगा, उसनै मार कै आऊंगा,
आकै भोजन खाऊंगा, कती ना बार लगाऊंगा,
रसोई मै तनै पाऊंगा, एक साड़ी ल्यादी तेरी ||

गुरु जगदीश मिल्या अलबेला, ललित बण्या चित का चेला,
रानी गेल्या होरया इसा झमेला, जणू बड़बेरी मै फंसरया केला,
यो दान्ना मारद्यूं तेरा छूटै गेल्ला, तनै इसी होरी रात अँधेरी ||