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क्यूँ मुझे बार-बार दिखता है / सुनीता काम्बोज
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क्यूँ मुझे बार-बार दिखता है
उसकी आँखों में प्यार दिखता है
उसको पाने की चाह में देखो
हर कोई बेक़रार दिखता है
क्या छुपाता है मेरी नज़रों से
अब मुझे आर-पार दिखता है
रेत बहता है अब हवाओं में
हर तरफ़ थार-थार दिखता है
और कोई मरज़ नहीं उसको
इश्क़ का ही बुख़ार दिखता है
ज़िन्दगी के हरेक पन्नें पर
मुझको गीता का सार दिखता है