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क्योंकि काकी अख़बार पढ़ना नहीं जानती थीं / गुँजन श्रीवास्तव

अख़बार आया
दौड़ कर गईं काकी
खोला उसे पीछे से
और चश्मा लगा पढ़ने लगीं राशिफ़ल
भविष्य जानने की ख़ातिर !

वो नही पढ़ सकीं वो ख़बरें
जिनमें दर्ज थीं कल की तमाम वारदातें

ना ही वो जान सकीं क़ातिलों को
और उन इलाकों को
जो इनदिनों लुटेरों और क़ातिलों के अड्डे थे !

अफ़सोस, काकी भविष्य में जाने से पहले ही
चली गईं उस इलाके में

जहाँ जाने को मना कर रहे थे अख़बार !

अब उनकी मृत्य के पश्चात –
काका खोलते हैं
भविष्य से पहले अतीत के पन्ने
जो चेतावनी बन कर आते हैं अख़बार से लिपट
उनकी दहलीज़ पर !