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"क्यों खुद को तड़पाती हो / तारकेश्वरी तरु 'सुधि'" के अवतरणों में अंतर

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प्रीत जुदाई की बातों से,
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सावन-पतझड़ की बातों में
क्यों खुद को तड़पाती हो।
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क्यों खुद को तुम उलझाती हो
मैं हर मौसम से गुज़री हूँ,
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छँट जाएगा जीवन का तम
मुझको तुम क्या बतलाती हो।
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नाहक खुद को तड़पाती हो ।
  
मैं तेरे उर की पीड़ा से,  
+
मैं तेरे उर की पीड़ा से ,
हूँ तनिक नहीं अनजान सखी।
+
हूँ तनिक नहीं अनजान सखी ।
इसको तू अब अपनाकर जी,  
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कुछ दिन इसको अपनाकर जी ,
 
ये बात जरा  बस मान सखी।
 
ये बात जरा  बस मान सखी।
है पीड़ा आज नई तेरी,  
+
है पीड़ा आज नई तेरी,
तब सहज सभी कह जाती हो
+
  तब सहन नहीं कर पाती हो
 +
सावन पतझड़ की...............
  
नित हूक ह्रदय में उठती है,  
+
नित हूक ह्रदय में उठती है ,
रातें भी तुझ सँग जगती है।
+
रातें भी सँग- सँग जगती है ।
लरजे़ ये लब ख़ामोश तेरे,  
+
लरजे़ ये लब ख़ामोश ह्रदय,
आँख़ें  चुपके से बहती है।
+
आँख़ें  चुपके से बहती हैं।
गुज़रा वक़्त पलटकर तुम फिर,
+
मैं जानूँ तुम सारे आँसू
पीड़ा को पी जाती हो।
+
पीड़ा सारी पी जाती हो ।
 +
सावन,पतझड़ की...........
  
ये जीवन बहता पानी -सा,  
+
ये जीवन बहता पानी -सा,
चुन लेगा खु़द अपनी राहें।
+
चुन लेगा खु़द अपनी राहें ।
जो गुज़र चुका तू भूल उसे,  
+
जो गुज़र चुका तू भूल उसे ,
नव सपने फैलाते बाँहें।
+
नव सपने फैलाते बाँहें ।
निज को झूठी उम्मीदों से,  
+
निज को झूठी उम्मीदों से ,
तुम आख़िर क्यो बहलाती हो?
+
तुम आख़िर क्यो बहलाती हो ?
 +
सावन पतझड़ की................
 
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16:27, 8 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

सावन-पतझड़ की बातों में
क्यों खुद को तुम उलझाती हो
छँट जाएगा जीवन का तम
नाहक खुद को तड़पाती हो ।

मैं तेरे उर की पीड़ा से ,
हूँ तनिक नहीं अनजान सखी ।
कुछ दिन इसको अपनाकर जी ,
ये बात जरा बस मान सखी।
है पीड़ा आज नई तेरी,
 तब सहन नहीं कर पाती हो ॥
सावन पतझड़ की...............

नित हूक ह्रदय में उठती है ,
रातें भी सँग- सँग जगती है ।
लरजे़ ये लब ख़ामोश ह्रदय,
आँख़ें चुपके से बहती हैं।
मैं जानूँ तुम सारे आँसू
 पीड़ा सारी पी जाती हो ।
सावन,पतझड़ की...........

ये जीवन बहता पानी -सा,
चुन लेगा खु़द अपनी राहें ।
जो गुज़र चुका तू भूल उसे ,
नव सपने फैलाते बाँहें ।
निज को झूठी उम्मीदों से ,
तुम आख़िर क्यो बहलाती हो ?
सावन पतझड़ की................