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क्यों जी रहा हूँ / बोहिस वियाँ / हेमन्त जोशी

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मैं क्यों
जी रहा हूँ
क्यों जी रहा हूँ मैं —

धूप में
दीवार से सटी
गोरी औरत की जाँघों के लिए

किसी
जहाज़ के
उभारदार पाल के लिए

दुकानों की छाया
या सिरकी से पी जाने वाली
ठण्डी कॉफ़ी के लिए

रेत को
हाथ से छूने के लिए
या पानी की गहराई में
झाँकने के लिए
जो बेहद नीला हो चला है

बहुत नीचे चला गया है
मछलियों के साथ
शान्त मछलियों के साथ
जो तलछट पर पलती हैं
और शैवालों के परे उड़ती है
जैसे सुस्त चिड़िया
जैसे नीली चिड़िया

क्यों
जी रहा हूँ मैं —
क्योंकि बहुत सुन्दर है जीवन ।

मूल फ़्रांसीसी से अनुवाद : हेमन्त जोशी

और लीजिए, अब यही कविता मूल फ़्रांसीसी भाषा में पढ़िए
            Boris Vian
      Pourquoi que je vis

Pourquoi que je vis
Pour la jambe jaune
D'une femme blonde
Appuyée au mur
Sous le plein soleil
Pour la voile ronde
D'un pointu du port
Pour l'ombre des stores
Le café glacé
Qu'on boit dans un tube
Pour toucher le sable
Voir le fond de l'eau
Qui devient si bleu
Qui descend si bas
Avec les poissons
Les calmes poissons
Ils paissent le fond
Volent au-dessus
Des algues cheveux
Comme zoizeaux lents
Comme zoizeaux bleus
Pourquoi que je vis
Parce que c'est joli