http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5_%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%A8_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6&feed=atom&action=historyक्यों नहीं / राजीव रंजन प्रसाद - अवतरण इतिहास2024-03-28T23:20:10Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82_/_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A4%B5_%E0%A4%B0%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%A8_%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%A6&diff=58938&oldid=prevRajeevnhpc102: नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem>तुम्हारा ख…2009-10-24T03:12:18Z<p>नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem>तुम्हारा ख…</p>
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{{KKRachna<br />
|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद <br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<poem>तुम्हारा खत पढा<br />
फिर पढा..<br />
कितने ही टुकडे चाक कलेजे के<br />
मुँह को आ पडे<br />
थामा ज़िगर को<br />
और बिलकुल बन चुका मोती भी चूने न दिया<br />
फिर पढा तुमहारा खत<br />
और शनैः-शनैः होम होता रहा स्वयमेव<br />
<br />
एक एक शब्द होते रहे गुंजायित<br />
व्योम में प्रतिध्वनि स्वाहा!<br />
नेह स्वाहा!<br />
भावुकता स्वाहा!<br />
तुम स्वाहा!<br />
मैं स्वाहा!<br />
और हमारे बीच जो कुछ भी था....स्वाहा!<br />
<br />
आँखों को धुवाँ छील गया<br />
गालों पर एक लम्बी लकीर खिंच पडी<br />
जाने भीतर के वे कौन से तंतु<br />
आर्तनाद कर उठे..शांतिः शांतिः शांतिः<br />
<br />
अपनी ही हथेली पर सर रख कर<br />
पलकें मूंद ली<br />
ठहरे हुए पानी पर हल्की सी आहट नें<br />
भवरें बो दीं<br />
झिलमिलाता रहा पानी<br />
सिमट कर तुम्हारा चेहरा हो गया<br />
<br />
लगा चीख कर उठूं और एक एक खत<br />
चीर चीर कर इतने इतने टुकडे कर दूं<br />
जितनें इस दिल के हैं.....<br />
हिम्मत क्यों नहीं होती मुझमे??<br />
<br />
२३.०४.१९९५<br />
</poem></div>Rajeevnhpc102