भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्यों ये कहते हो घनश्याम आते नहीं / बिन्दु जी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:05, 18 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बिन्दु जी |अनुवादक= |संग्रह=मोहन म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्यों ये कहते हो घनश्याम आते नहीं।
सच्चे दिल से उन्हें तुम बुलाते नहीं॥
क्यों ये कहते हो कुछ भोग खाते नहीं,
भीलनी भाव से तुम खिलाते नहीं॥
क्यों ये कहते हो गीता सुनाते नहीं।
पार्थ सी धारणा तुम दिखाते नहीं॥
क्यों ये कहते हो लज्जा बचाते नहीं।
द्रौपदी सी विनय तुम सुनाते नहीं॥
क्यों ये कहते हो नर मन बनाते नहीं।
प्रेम ‘बिन्दु’ के दृग से गिराते नहीं॥