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देखता हूँ 'क्षितिज के उस पार' जा कर | देखता हूँ 'क्षितिज के उस पार' जा कर | ||
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कहीं सफ़ेद अँधेरा | कहीं सफ़ेद अँधेरा | ||
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कहीं स्याह उजाला | कहीं स्याह उजाला | ||
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खो दिया है दर्द ने एहसास अपना | खो दिया है दर्द ने एहसास अपना | ||
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करीबी इतनी कि | करीबी इतनी कि | ||
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देख तक नहीं सकते | देख तक नहीं सकते | ||
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कोयला सुलग रहा है | कोयला सुलग रहा है | ||
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अंगीठी जल रही है बदन में | अंगीठी जल रही है बदन में | ||
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भुने हुए अक्षर | भुने हुए अक्षर | ||
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काग़ज़ पर गिरते हैं जब | काग़ज़ पर गिरते हैं जब | ||
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तो 'छन्' से आवाज़ आती है | तो 'छन्' से आवाज़ आती है | ||
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गले में अटक जाता है | गले में अटक जाता है | ||
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साँस का टुकड़ा | साँस का टुकड़ा | ||
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मेरी पलकें नोचता है कोई | मेरी पलकें नोचता है कोई | ||
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फिर देखती है नंगी आँखें | फिर देखती है नंगी आँखें | ||
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'एक छिली हुई रूह' | 'एक छिली हुई रूह' | ||
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बिल्कुल चाँद की तरह | बिल्कुल चाँद की तरह | ||
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सोचता हूँ सन्नाटा बुझा दूँ | सोचता हूँ सन्नाटा बुझा दूँ | ||
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बहने लगती है उंगलियाँ | बहने लगती है उंगलियाँ | ||
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बिखरने लगता है वजूद | बिखरने लगता है वजूद | ||
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सोच पिघलती है धुआं बनकर | सोच पिघलती है धुआं बनकर | ||
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सहसा सूख जाती है नींद की ज़मीन | सहसा सूख जाती है नींद की ज़मीन | ||
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रात की दीवार में दरार हो जैसे | रात की दीवार में दरार हो जैसे | ||
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फ्रेम खाली है अब तक | फ्रेम खाली है अब तक | ||
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मुस्कराहट बाँझ हो गई | मुस्कराहट बाँझ हो गई | ||
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कुछ हर्फ़-सा नहीं मिलता | कुछ हर्फ़-सा नहीं मिलता | ||
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बहुत उदास हैं टूटे हुए नुक्ते | बहुत उदास हैं टूटे हुए नुक्ते | ||
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समय के माथे पर ज़ख्म-सा क्या है ? | समय के माथे पर ज़ख्म-सा क्या है ? | ||
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जमने लगी है चोट की परत | जमने लगी है चोट की परत | ||
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चीखते हैं मुरझाये हुए मौसम | चीखते हैं मुरझाये हुए मौसम | ||
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अभी बाकी है सम्बन्ध कोई | अभी बाकी है सम्बन्ध कोई | ||
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अब तो दिन रात यही करता हूँ | अब तो दिन रात यही करता हूँ | ||
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क्षितिज से जब भी लहू रिसता है | क्षितिज से जब भी लहू रिसता है | ||
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देखता हूँ 'क्षितिज के उस पार' जा कर। | देखता हूँ 'क्षितिज के उस पार' जा कर। | ||
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01:33, 25 मई 2011 के समय का अवतरण
देखता हूँ 'क्षितिज के उस पार' जा कर
कहीं सफ़ेद अँधेरा
कहीं स्याह उजाला
खो दिया है दर्द ने एहसास अपना
करीबी इतनी कि
देख तक नहीं सकते
कोयला सुलग रहा है
अंगीठी जल रही है बदन में
भुने हुए अक्षर
काग़ज़ पर गिरते हैं जब
तो 'छन्' से आवाज़ आती है
गले में अटक जाता है
साँस का टुकड़ा
मेरी पलकें नोचता है कोई
फिर देखती है नंगी आँखें
'एक छिली हुई रूह'
बिल्कुल चाँद की तरह
सोचता हूँ सन्नाटा बुझा दूँ
बहने लगती है उंगलियाँ
बिखरने लगता है वजूद
सोच पिघलती है धुआं बनकर
सहसा सूख जाती है नींद की ज़मीन
रात की दीवार में दरार हो जैसे
फ्रेम खाली है अब तक
मुस्कराहट बाँझ हो गई
कुछ हर्फ़-सा नहीं मिलता
बहुत उदास हैं टूटे हुए नुक्ते
समय के माथे पर ज़ख्म-सा क्या है ?
जमने लगी है चोट की परत
चीखते हैं मुरझाये हुए मौसम
अभी बाकी है सम्बन्ध कोई
अब तो दिन रात यही करता हूँ
क्षितिज से जब भी लहू रिसता है
देखता हूँ 'क्षितिज के उस पार' जा कर।