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क्‍या नामवरों के शहर की यही गति होती है नवीन कुमार !! / विनय सौरभ

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यहां अरूण कमल रहते हैं मेरे प्रिय कवि।
खगेन्‍द्र ठाकुर हैं यहां ख्‍यात नाम सरल। नंद किशोर नवल हैं
नामवर आलोचक। इस शहर में इ​​तिहासकार रामशरण शर्मा
रहते हैं। स्त्रियों के संघर्ष की झंडाबरदार शांति ओझा रहती हैं।
अवधेश प्रीत हैं यहां कथाकार यारबाश आदमी। एक लगभग
अपनी उम्र के तेज आलोचक कवि कुमार मुकुल हैं। मिथिला
के कवि पत्रकार अविनाश इन दिनों पाटलिपुत्र में हैं। जसम
के उर्जावान साथी रामजी राय और गोपेश्‍वर सिंहादि भी
इसी धरती पर।

मैं संथाल परगना के छोटे कस्‍बे का आदमी हूं इन नामों के
सम्‍मोहन से भरा हुआ। अपने शौक अपनी इच्‍छाओं अपने लेखन
के बीच अकेला।

तीस सौ पचास किलोमीटर की यात्रा की मेरी थकान और कितनी
गहरी हो जाती है जब - मैं यहां आकर अवधेश प्रीत से
पूछता हूं अरूण कमल के बारे में ...। ढाई महीने पहले एक गोष्‍ठी
में हुई थी मुलाकात। अभी शायद यहीं होंगे। कुछ दिनों पहले
सुना था गये थे भोपाल।
इनकम टैक्‍स चौराहे पर अविनाश को दिखे थे कुमार मुकुल
अपनी फटफटिया पर पंद्रह रोज से उपर हुए...।

अप्रत्‍याशित नरमी और संतभाव से मिलेंगे आलोक धन्‍वा
कंधे पर देवताओं की तरह हल्‍का स्‍पर्श देते हुए कहेंगे : मेरा
नंबर तो होगा ना आपके पास...कभी याद कर लिया कीजिए भाई।

यह हमारी ही बनाई हुई आदत है। यह दौर हमारा ही पैदा
किया हुआ। हम दिल्‍ली में भोपाल में इलाहाबाद में जाकर
और भी कुछ सीखते हैं : कहते हैं विलक्षण शायरी
करने वाले अल्‍पज्ञात शायद संजय कुमार कुंदन।

साख और व्‍यक्तित्‍व बचाने की गलत कोशिश में लगातार
नपुंसक हो रही है हमारी अभिव्‍यक्ति। यहां दर्ज क्रोध
हमारा निरर्थक हो रहा है। हम सब यह जान ही रहे हैं
एक झूठे आदर्श और गर्व का वितंडा खडा करते हैं अपनी सर्जना
में और दूसरे ही रोज व्‍यर्थ हो जाता है सब कुछ सबसे
पहले हमारे ही भीतर।

कितना प्रायोजित और जीवन से हीन वह सब कुछ !!
एक ही शहर और मुहल्‍ले में रहे और बरसों से मिले नहीं कभी
मिलने की तरह।

क्‍या नामवरों के शहर की यही गति होती है नवीन कुमार !!