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खंड-15 / पढ़ें प्रतिदिन कुण्डलियाँ / बाबा बैद्यनाथ झा

आकर इस भू लोक में, सीखें शिष्टाचार।
ज्ञान प्राप्ति के ही लिए, शिक्षा है आधार।।
शिक्षा है आधार, यही है योग्य बनाती।
हर लेती अज्ञान, सत्य का मार्ग दिखाती।।
करते हैं शुभ कर्म, धरा पर स्वर्ग बसाकर।
कर लें सार्थक जन्म, उचित शिक्षा लें आकर।।
 
लेते हैं हम जन्म तो, रहता है अज्ञान।
पाकर शिक्षा आप हम, बनते हैं विद्वान।।
बनते हैं विद्वान, प्रशंसित जग में होते।
सुख-दुख को सम जान, नहीं साहस हम खोते।।
अनपढ़ के भी मध्य, दान विद्या का देते।
जो है मानव-धर्म, निभाने शिक्षा लेते।।
 
मानव जो शिक्षित रहे, करे न शिक्षा दान।
धरती का वह भार है, मानो मृतक समान।।
मानो मृतक समान, बाँट दें अपनी शिक्षा।
मानें मेरी बात, आपसे माँगू भिक्षा।।
जिसे नहीं है ज्ञान, मूर्ख वह बनता दानव।
दे विद्या का दान, बनें हम असली मानव।।
 
आओ हम मिलकर चलें, आज क्षितिज के पार।
वहीं भुला इस जगत को, खूब करेंगे प्यार।।
खूब करेंगे प्यार, वहाँ स्वच्छन्द रहेंगे।
गाएँगे हम गीत, नृत्य भी खूब करेंगे।।
वहाँ न कोई रोक, झूमकर मौज मनाओ।
जीवन का आनन्द, प्राप्त करने तुम आओ।।
 
करते हैं श्रम नित्य ही, फिर भी है मुस्कान।
होते हैं ये श्रमिक ही, सबसे अधिक महान।।
सबसे अधिक महान, यही हैं विश्व चलाते।
जितने हों निर्माण, श्रमिक ही सतत बनाते।।
भूखा है परिवार, पेट सबके हैं भरते।
चूता रहता घाम, काम फिर भी हैं करते।।

सबको जोडूं शौक था, मिलकर रहे समाज।
पर मेरा अस्तित्व ही, टुकड़ा-टुकड़ा आज।।
टुकड़ा-टुकड़ा आज, किसी को जोड़ न पाया।
सबके मन में आज, कलुषता मात्र समाया।।
कर पा क्या दूर, भरे दूषित हर मन को।
रहा नहीं आसान, समझ पाना अब सबको।।
 
खटते हैं जो रातदिन, उसका यह संयोग।
भूख ग़रीबी ही लिए, जीते हैं वे लोग।।
जीते हैं वे लोग, काम फिर भी हैं करते।
क्या है उनका दोष, भूख से बच्चे मरते?
करते हैं संघर्ष, अन्य पर दोष न मढ़ते।
जबतक अन्तिम साँस, सर्वदा वे हैं खटते।।
 
मिलते हैं प्रारब्ध से, रोग शोक सुख हर्ष।
भूख ग़रीबी से करें, हमसब भी संघर्ष।।
हमसब भी संघर्ष, गरीबी सुख हर लेती।
दूर करे आलस्य, जोश भी यह भर देती।।
उपवन में भी फूल, सदा श्रम से ही खिलते।
बिना काम सुखभोग, अभागे को ही मिलते।।
 
पाकर यह सम्मान मैं, आज पुनः हूँ धन्य।
बड़भागी मेरे सिवा, कहें कौन है अन्य।।
कहें कौन है अन्य, इसे मैं भाग्य मानता।
लिख लेता कुछ छन्द, नहीं कुछ और जानता।।
देती माता ध्यान, वही मुझसे लिखवाकर।
दिलवाती सम्मान,, गर्व है इसको पाकर।।
 
साहिल भी दिखता नहीं, डुबा रही मझधार।
आकर अब रक्षा करें, मेरे खेवनहार।।
मेरे खेवनहार, आप ही मेरे रक्षक।
जग देता संत्रास, लूटता बनकर भक्षक।।
करते सब परिहास, समझकर मुझको जाहिल।
संकट में हैं प्राण, दिखा दें प्रभु अब साहिल।।