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खंड-3 / पढ़ें प्रतिदिन कुण्डलियाँ / बाबा बैद्यनाथ झा

करता है हर कार्य जो, रख प्रभु पर विश्वास।
रहे समर्पण भाव तो, पूरी हो हर आस।।
पूरी हो हर आस, भुला दें हम कर्तापन।
खुद को देंगे सौंप, बढ़ा प्रभु से अपनापन।।
अहं भाव से युक्त, व्यक्ति ही दुख में मरता।
करें विहित सब कर्म, समझ लें प्रभु ही करता।।

आज़ादी के हो गये, आज बहत्तर साल।
कहें आज भी देश के, सुधर गये हैं हाल?
सुधर गये हैं हाल, नहीं है कोई रोता?
वैमनस्य का बीज, सदा आपस में बोता।।
खुश मुट्ठीभर लोग, शेष की है बर्बादी।
सब हैं भय आक्रान्त, यही है क्या आज़ादी?
 
रहता हो मस्तिष्क में, शब्दों का भंडार।
हो प्रसन्न कोई नहीं, समझो सब बेकार।।
समझो सब बेकार, शब्द ही मान बढ़ाता।
एक शब्द विपरीत, हमारा मान घटाता।।
बने घृणा का पात्र, कभी जो उल्टा कहता।
शब्द ब्रह्म सापेक्ष, उसी में सबकुछ रहता।।
 
स्वार्थी कहना अन्य को, क्या है यह अधिकार?
खुद मैं जब दुख में करूँ, प्रभु से करुण पुकार?
प्रभु से करुण पुकार, कहें यह स्वार्थ नहीं है?
मढ़ूँ अन्य पर दोष, कहें यह बात सही है?
सुख-दुख को सम मान, बनें हम जब परमार्थी।
कह सकते हम आप, अन्य को तब ही स्वार्थी।।

भूलें आप अतीत को, सम्प्रति पर दें ध्यान।
केन्द्रित हों साहित्य पर, भला करें भगवान।।
भला करें भगवान, सदा वे अच्छा करते।
जो उनके हैं भक्त, कभी न किसी से डरते।
कह “बाबा” कविराय, उच्च चोटी को छू लें।
जपना है हरिनाम, शेष जग को ही भूलें।।
 
हरदम जो जपता रहे, शिव का मंगल नाम।
उनके दर्शन मात्र से, पूरे हों सब काम।।
पूरे हों सब काम, सदा शिव-शिव जो बोले।
हो जाते निष्काम, सभी पापों को धो ले।
कह “बाबा” कविराय, जपेगा जो भी बमबम।
उसे न मिलता क्लेश, खुशी से जीता हरदम।।
 
भोले बाबा सर्वदा, जिसपर रहें सहाय।
हरफनमौला वह रहे, कभी नहीं निरुपाय।।
कभी नहीं निरुपाय, हमेशा जो वह करता।
पूरे हों सब काम, नहीं वह आहें भरता।
कह “बाबा” कविराय, सदा जो बमबम बोले।
कर देते उद्धार, भवानी-शंकर भोले।।

भोले दानी आपसे, क्या मैं माँगूँ आज।
हो मेरे सत्कर्म से, गर्वित सभ्य समाज।।
गर्वित सभ्य समाज, किसी का दिल न दुखा।
करूँ विहित सब कर्म, विश्व में नाम कमा।।
जपूँ आपका नाम, भक्ति से हृदय न डोले।
आशुतोष हैं आप, हमारे बमबम भोले।।
 
 
गिरने से होती नहीं, कभी पराजय मित्र।
पुनि उठकर सँभले नहीं, होती हार विचित्र।।
होती हार विचित्र, सतत् साहस तो कर लें।
कर लें दृढ़ संकल्प, लक्ष्य से झोली भर लें।।
अपना कोई बंधु, लगे विपत्ति से घिरने।
हाथ पकड़ लें थाम, नहीं दें उसको गिरने।।

प्रत्युत्तर पा आपका, कुण्डलियाँ हैं धन्य।
आप सरीखे पारखी, कहाँ मिलेगा अन्य।।
कहाँ मिलेगा अन्य, धन्य है जीवन मेरा।
पाकर यह उत्साह, छंद ने डाला डेरा।।
किया आपने आज, मुझे अब बंधु निरुत्तर।
मैं हूँ आज प्रसन्न, प्राप्तकर यह प्रत्युत्तर।।