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खंड-7 / पढ़ें प्रतिदिन कुण्डलियाँ / बाबा बैद्यनाथ झा

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रचना है यह आपकी, सचमुच ही उत्कृष्ट।
लेखन में रहता सदा, हरदम भाव विशिष्ट।।
हरदम भाव विशिष्ट, भरी रहती गुणवत्ता।
पाठक होते मुग्ध, हिलेगी इससे सत्ता।।
पढ़कर हो प्रारम्भ, कभी रोना या हँसना।
रखती दोनों भाव, वही है सुन्दर रचना।।
 
आएँ हमसब आज लें, विजयोत्सव में भाग।
काम क्रोध वश में रहे, सद्गुण जाए जाग।।
सद्गुण जाए जाग, विजय तब होगी असली।
पा भोतिक उपलब्धि, दर्प पालेंगे नकली।।
जानेंगे अध्यात्म, मनुज तन सफल बनाएँ।
रखकर हृदय पवित्र, मनाने उत्सव आएँ।।

हर नारी है चाहती, जीवनसाथी एक।
सच्चरित्र कर्मठ रहे, दिल का भी हो नेक।।
दिल का भी हो नेक, बने जो सतत सहारा।
दुख-सुख में रह संग, करे हर कष्ट किनारा।।
चलता जीवनचक्र, नहीं आए लाचारी।
है देवों का वास, जहाँ पूजित हर नारी।।

अपने जीवन का सफर, चलता है अविराम।
सदा समर्पण भाव से, करता हूँ हर काम।।
करता हूँ हर काम, हृदय में रहती राधा।
जपूँ कृष्ण का नाम, वही हर लेते बाधा।।
सुख-दुख हैं प्रारब्ध, कृष्ण हैं जाग्रत-सपने।
रखता हूँ समभाव, जगत में सब हैं अपने।।

बालक हूँ पर ढो रहा, सिर पर इतना भार।
पेट नहीं यह मानता, भूखा है परिवार।।
भूखा है परिवार, उसे फिर कौन खिलाए।
बूढ़ी माँ बीमार, दवा भी कौन दिलाए।।
कभी न लूँगा भीख, बनूँगा खुद प्रतिपालक।
माँ को देवी मान, खटूँगा यद्यपि बालक।।

रखते हैं वे छन्द पर, पूरा ही अधिकार।
दक्षिण भारत में बसे, करते सतत प्रचार।।
करते सतत प्रचार, नाम उनका है ईश्वर।
वाणी में माधुर्य, मंच पर गाते सस्वर।।
हिन्दी सीखें लोग, बात यह सबसे कहते।
देते हैं सन्देश, प्रेम हिन्दी से रखते।।
 
 
हिन्दी का परचम लिए, दक्षिण भारत घूम।
करते सतत प्रचार वे, मस्ती में रह झूम।।
मस्ती में रह झूम, काम भी अपना करते।
रहते बन निर्भीक, कभी न किसी से डरते।।
हिन्दी ही सर्बत्र, बने माथे की बिन्दी।
बन जाएगी शीघ्र, विश्व की भाषा हिन्दी।।

भाई बहनों के लिए, है अद्भुत यह पर्व।
करते 'भैयादूज' पर, भारतवासी गर्व।।
भारतवासी गर्व, बहन के घर में जाकर।
भाई ले आशीष, भाल पर तिलक लगाकर।।
देते हैं उपहार, बढ़ी यद्यपि मँहगाई।
जितनी हो सामर्थ्य, बहन को देते भाई।।
 
काली माता आपसे, करूँ प्रार्थना एक।
दुष्ट बहुल संसार में, रहें सुरक्षित नेक।।
रहें सुरक्षित नेक, भक्तजन हर्ष मनाएँ।
रक्षक बनकर आप, आपदा दूर भगाएँ।।
जग की माता आप, बढ़े सबकी खुशहाली।
मैं भी करता ध्यान, आपका प्रतिदिन काली।।
 
ज्ञानी है पर रख अहं, नहीं बाँटता ज्ञान।
वह पृथ्वी का भार है, सद्यः मृतक समान।।
सद्यः मृतक समान, उसे नहि प्राप्त प्रतिष्ठा।
उसका सारा ज्ञान, व्यर्थ है जैसे विष्ठा।।
सर्वश्रेष्ठ विद्वान, कहाता विद्या दानी।
नित्य बाँटता ज्ञान, वही है असली ज्ञानी।।