भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"खजुराहो के निडर कलाधर, अमर शिला में गान तुम्‍हारा / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} खजुराहो के निडर कलाधर, अमर शि…)
 
पंक्ति 28: पंक्ति 28:
 
जिससे ठोस-कड़े पत्‍थर को
 
जिससे ठोस-कड़े पत्‍थर को
  
मो गला तुमने कर डाला,
+
मोम गला तुमने कर डाला,
  
 
:::और दिए कर आकार, किया श्रृंगार,
 
:::और दिए कर आकार, किया श्रृंगार,

08:52, 3 दिसम्बर 2010 का अवतरण

खजुराहो के निडर कलाधर, अमर शिला में गान तुम्‍हारा।


पर्वत पर पद रखने वाला

मैं अपने क़द का अभिमानी,

मगर तुम्‍हारी कृति के आगे

मैं ठिगना, बौना, बे-बानी

बुत बनकर निस्‍तेज खड़ा हूँ।
अनुगुंजिन हर एक दिशा से,

खजुराहो के निडर कलाधर, अमर शिला में गान तुम्‍हारा।


धधक रही थी कौन तुम्‍हारी

चौड़ी छाती में वह ज्‍वाला,

जिससे ठोस-कड़े पत्‍थर को

मोम गला तुमने कर डाला,

और दिए कर आकार, किया श्रृंगार,
नीति जिनपर चुप साधे,

किंतु बोलता खुलकर जिनसे शक्‍त‍ि-सुरुचमय प्राण तुम्‍हारा।

खजुराहो के निडर कलाधर, अमर शिला में गान तुम्‍हारा।


एक लपट उस ज्‍वाला की जो

मेरे अंतर में उठ पाती,

तो मेरे भी दग्‍ध गिरा कुछ

अंगारों के गीत सुनाती,

जिनसे ठंडे हो बैठे हो दिल
गर्माते, गलते, अपने को

कब कर पाऊँगा अधिकरी, पाने का, वरदान तुम्‍हारा।

खजुराहो के निडर कलाधर, अमर शिला में गान तुम्‍हारा।


मैं जीवित हूँ मेरे अंदर

जीवन की उद्दम पिपासा,

जड़ मुर्दों के हेतु नहीं है

मेरे मन में मोह जरा-सा,

पर उस युग में होता जिसमें
ली तुमने छेनी-टाँकी तो

एक माँगता वर विधि से, कर दे मुझको पाषाण तुम्‍हारा।

खजुराहो के निडर कलाधर, अमर शिला में गान तुम्‍हारा।