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खजूर की चिरायँध गन्ध / श्रीधर करुणानिधि

बता सकते हो मुझे !
उस खजूर के पेड़ों वाले शहर का क्या हुआ
जिसके बीचों-बीच बोरों में
खजूर के बदले बम रखा गया था
और हर दिन
चिथड़ों में बदलता गया था आदमी
खजूर के मीठे जायके के साथ

मुझे जानना है
उस कत्थई बुरके वाली लड़की के बारे में
जिसका अब्बू सुनहली घड़ी लिए
उसका अब भी करता है इन्तज़ार
यह जानते हुए कि
हवा में यहाँ-वहाँ भटकती चिरायँध गन्ध में
शामिल हो सकती है किसी ज़िन्दा शरीर के
भूनने की दुर्गन्ध

मुझे बताओ कि
अपने ज़ख़्मों सहित
खजूर के गुड़-सी मीठी नीन्द सोते
बच्चे का क्या हुआ
जिसकी एक खरोंच पर
घर की दीवारें भी आहें भरती थीं

अनगिनत सपनों के जलने की दुर्गन्ध
और उम्मीदों की अधजली लाशों से पटे पड़े
और सबकी पहचानों में ग़ुमनाम
उस शहर की कहानी का क्या अन्त हुआ
बता सकते हो तुम भी ।