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खड़े दुराहे पे सोचते हैं कि रोज़ जश्ने बहार क्यों हो / रंजना वर्मा

खड़े दोराहे पे सोचते हैं कि रोज़ जश्ने बहार क्यों हो
लिपट रहे हैं जो दामनों से हमारे हिस्से में खार क्यों हो

तुम्हारी यादें तुम्हारे किस्से कभी नहीं होंगे दूर दिल से
मगर कभी हम समझ न पाये कि दिल तुम्हीं पे निसार क्यों हो

रही न शब चैन नींद वाली रहे बदलते हम यूँ ही करवट
न ख़्वाब आँखों में कोई आया भरा नज़र में खुमार क्यों हो

कभी न की हमने बेवफ़ाई कभी न चाहा था दूर जाना
जो तोड़ जाते हैं अपने वादे हमारा उनमें शुमार क्यों हो

न जाने किस की है बददुआ ये जो साथ है छूटा यूँ हमारा
तुम्ही कोई रास्ता बताओ ये हादसा बार बार क्यों हो

कभी किसी का था दिल न तोड़ा न ही कभी हम थे बेमुरव्वत
कोई बता जाये हम से आ के कि दूर तेरा दयार क्यों हो

अजब जमाना गज़ब खुदाई कभी नहीं हम को रास आयी
कभी समझ में नहीं ये आया हमेशा अपनी ही हार क्यों हो