भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"खड़े हैं लाखों / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
<poem>
 
<poem>
  
 
+
1
 +
कँटीली राहें
 +
पथरीली चढ़ाई
 +
हाथ  थामना !
 +
2
 +
'''खड़े हैं लाखों'''
 +
रक्तपायी  पथ  में
 +
बचके चलो !
 +
3
 +
शंकित  दृष्टि
 +
बींधती तन-मन
 +
दग्ध जीवन !
 +
4
 +
भाग्य का लेखा
 +
भला करके भी तो
 +
सुख न देखा !
 +
5
 +
तुम्हारी आँखें-
 +
आँसू का समन्दर
 +
पीना मैं चाहूँ।
 +
6
 +
पोंछ लो आँखें
 +
सीने में छुप जाओ
 +
क्रूर हैं घेरे ।
 +
7
 +
यज्ञ रचाया
 +
मन्त्र भी पढ़े सभी
 +
शाप न छूटा।
 +
8
 +
जलती रही
 +
समिधा बन नारी
 +
राख ही बची ।
 +
9
 +
छूटे तो छूटे
 +
चाहे प्राण अपने !
 +
हाथ न छूटे।
 +
10
 +
सिन्धु तरेंगें
 +
विश्वास की है नैया
 +
पार करेंगे।
  
  
 
</poem>
 
</poem>

03:56, 10 अगस्त 2018 का अवतरण


1
कँटीली राहें
पथरीली चढ़ाई
हाथ थामना !
2
खड़े हैं लाखों
रक्तपायी पथ में
बचके चलो !
3
शंकित दृष्टि
बींधती तन-मन
दग्ध जीवन !
4
भाग्य का लेखा
भला करके भी तो
सुख न देखा !
5
तुम्हारी आँखें-
आँसू का समन्दर
पीना मैं चाहूँ।
6
पोंछ लो आँखें
सीने में छुप जाओ
क्रूर हैं घेरे ।
7
यज्ञ रचाया
मन्त्र भी पढ़े सभी
शाप न छूटा।
8
जलती रही
समिधा बन नारी
राख ही बची ।
9
छूटे तो छूटे
चाहे प्राण अपने !
हाथ न छूटे।
10
सिन्धु तरेंगें
विश्वास की है नैया
पार करेंगे।