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|संग्रह=सवा लाख की बाँसुरी / दीनानाथ सुमित्र<br />
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{{KKCatDoha}}<br />
<poem><br />
201<br />
खूब जियो तुम जिन्दगी, रहो सदा बिंदास। <br />
कभी लौट आता नहीं, गया वक्त फिर पास।। <br />
<br />
202<br />
भीड़ नहीं चौपाल पर, सूना-सूना गाँव। <br />
बूढ़े बरगद सोचते, किसको दूँ मैं छाँव।। <br />
<br />
203<br />
क्या कोई भी धर्म यह, दे सकता है ज्ञान। <br />
जन्नत-से कश्मीर को, कर दो लहूलुहान।। <br />
<br />
204<br />
आधा होगा ज्ञान जब, होगा चित्त अधीर। <br />
सदा छलकता पात्र से, जब हो आधा नीर।। <br />
<br />
205<br />
कहाँ मिला आतंक से, मनचाहा अंजाम। <br />
मौत सदृश है जिन्दगी, इच्छा है बदनाम।। <br />
<br />
206<br />
भूल सुमित्तर माँगना, बाँट जगत को दान। <br />
बिन बाँटे मिलता नहीं, दुनिया में सम्मान। <br />
<br />
207<br />
जीवन, जैसे नाव है, मानव देह सवार। <br />
यश-अपयश दो तीर हैं, यह मन है पतवार।। <br />
<br />
208<br />
आएगी उस पैर में, निश्चित इक दिन मोच। <br />
मैं, मेरा, मुझसे नहीं, आगे जिसकी सोच।। <br />
<br />
209<br />
प्रतिभा को अवसर नहीं, चलता खूब जुगाड़। <br />
बरगद काटे जा रहे, बोये जाते ताड़।। <br />
<br />
210<br />
केवल शोक मना रहे, निकले सिर्फ़ सवाल। <br />
न्याय मीन को बाँटने, चुने गए घड़ियाल।। <br />
<br />
211<br />
ज्ञानी को अवसर नहीं, श्रम है बे-आधार। <br />
पैसों की ही पूछ है, आम लोग बेकार।। <br />
<br />
212<br />
करे अमावस फैसला, क्यों काला आकाश। <br />
ऐसे में कैसे मिले, बोलो कभी प्रकाश।। <br />
<br />
213<br />
बिना लड़े मिलता नहीं, मत माँगो तुम भीख। <br />
तुम गीता के ज्ञान से, इतनी तो लो सीख।। <br />
<br />
214<br />
झूठे हुए गवाह अब, पापी हैं आजाद। <br />
चिड़िया जाएगी कहाँ, कदम-कदम सैय्याद।। <br />
<br />
215<br />
उतना सहना चाहिए, बचा रहे सम्मान। <br />
मान अगर जाने लगे, ले लो हाथ कृपान।। <br />
<br />
216<br />
बुरे जनों से दूर रह, व्यर्थ वहाँ पर प्रीत। <br />
खगभक्षी सुनते नहीं, विहग दलों का गीत।। <br />
<br />
217<br />
प्रेम वहीं पर माँगिये, जिसके मन सद्भाव। <br />
प्रेम करे जब चोट तो, मिलता घातक घाव।। <br />
<br />
218<br />
नफ़रत को मत पालिये, रखिए प्रेमिल भाव। <br />
मानव को भाता नहीं, नागों-सा बर्ताव।। <br />
<br />
219<br />
काले मन के लोग सब, पहने वस्त्र सफेद। <br />
राजनीति वह आइना, खोले सारे भेद।। <br />
<br />
220<br />
तड़प रहा इस दौर में, घायल हो विश्वास। <br />
आशायें वध हो रहीं, चुप सारा आकाश।। <br />
</poem></div>Rahul Shivay