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खण्ड-11 / सवा लाख की बाँसुरी / दीनानाथ सुमित्र

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201
खूब जियो तुम जिन्दगी, रहो सदा बिंदास।
कभी लौट आता नहीं, गया वक्त फिर पास।।

202
भीड़ नहीं चौपाल पर, सूना-सूना गाँव।
बूढ़े बरगद सोचते, किसको दूँ मैं छाँव।।

203
क्या कोई भी धर्म यह, दे सकता है ज्ञान।
जन्नत-से कश्मीर को, कर दो लहूलुहान।।

204
आधा होगा ज्ञान जब, होगा चित्त अधीर।
सदा छलकता पात्र से, जब हो आधा नीर।।

205
कहाँ मिला आतंक से, मनचाहा अंजाम।
मौत सदृश है जिन्दगी, इच्छा है बदनाम।।

206
भूल सुमित्तर माँगना, बाँट जगत को दान।
बिन बाँटे मिलता नहीं, दुनिया में सम्मान।

207
जीवन, जैसे नाव है, मानव देह सवार।
यश-अपयश दो तीर हैं, यह मन है पतवार।।

208
आएगी उस पैर में, निश्चित इक दिन मोच।
मैं, मेरा, मुझसे नहीं, आगे जिसकी सोच।।

209
प्रतिभा को अवसर नहीं, चलता खूब जुगाड़।
बरगद काटे जा रहे, बोये जाते ताड़।।

210
केवल शोक मना रहे, निकले सिर्फ़ सवाल।
न्याय मीन को बाँटने, चुने गए घड़ियाल।।

211
ज्ञानी को अवसर नहीं, श्रम है बे-आधार।
पैसों की ही पूछ है, आम लोग बेकार।।

212
करे अमावस फैसला, क्यों काला आकाश।
ऐसे में कैसे मिले, बोलो कभी प्रकाश।।

213
बिना लड़े मिलता नहीं, मत माँगो तुम भीख।
तुम गीता के ज्ञान से, इतनी तो लो सीख।।

214
झूठे हुए गवाह अब, पापी हैं आजाद।
चिड़िया जाएगी कहाँ, कदम-कदम सैय्याद।।

215
उतना सहना चाहिए, बचा रहे सम्मान।
मान अगर जाने लगे, ले लो हाथ कृपान।।

216
बुरे जनों से दूर रह, व्यर्थ वहाँ पर प्रीत।
खगभक्षी सुनते नहीं, विहग दलों का गीत।।

217
प्रेम वहीं पर माँगिये, जिसके मन सद्भाव।
प्रेम करे जब चोट तो, मिलता घातक घाव।।

218
नफ़रत को मत पालिये, रखिए प्रेमिल भाव।
मानव को भाता नहीं, नागों-सा बर्ताव।।

219
काले मन के लोग सब, पहने वस्त्र सफेद।
राजनीति वह आइना, खोले सारे भेद।।

220
तड़प रहा इस दौर में, घायल हो विश्वास।
आशायें वध हो रहीं, चुप सारा आकाश।।