भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खण्ड-1 / यहाँ कौन भयभीत है / दीनानाथ सुमित्र

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:27, 19 दिसम्बर 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1
कवि होने से क्या मिला, पूछा करते यार।
मैं कहता हूँ यार से, कवि हो जा इक बार।

2
मैं रस का रसपान कर, बन बैठा रसखान।
दोहा-दोहा हो गया, अब मेरा ईमान।।

3
अनचाहे ही पा गया, पूरी है हर चाह।
मनवां बेपरवाह था, मनवां बेपरवाह।।

4
मरा सुमित्तर शान से, लिखते-लिखते गीत।
कोई दुश्मन था नहीं, सारे जग से प्रीत।।

5
गुजर जायगी ज़िंदगी, तेज बहुत है चाल।
शर्त एक है साथ में, सर पर कम हो माल।।

6
मंदिर आलीशान है, मस्जिद आलीशान।
काश! हमारा देश भी, हो जाता जापान।।

7
सच कहता हूँ आपसे, किया हमेशा प्यार।
दुश्मन मेरा कौन है, सब हैं मेरे यार।।

8
अरब खरब के खर्च से, होता रहा चुनाव।
आया पर ना अबतलक, भारत में समभाव।।

9
शिक्षा की हालत बुरी, मंहगा बहुत इलाज।
बेकारों की फौज से, है हलकान समाज।।

10
हरिया की बेटी कली, है बकरी के साथ।
देखी नहीं किताब वह, कलम न आई हाथ।।

11
उम्र बिता दी आपने, गा समता के गीत।
पर समता होती रही, सूखी-सूखी पीत।।

12
सुनने में आया नहीं, जीवन का संदेश।
दानव बन कर जी रहा, सुरपुर में देवेश।।

13
देशभक्त हैं ये बड़े, खो आये ईमान।
भरे बाग-सा लग रहा, इनको कब्रिस्तान।।

14
राजनीति में अब नहीं, आते हैं विद्वान।
नेता बनता है वही, जिसे नाक ना कान।।

15
मेरी ख्वाहिश नेक है, जमीं दिखे यह लाल।
प्यार-मोहब्बत का कभी, पड़े न कहीं अकाल।।

16
मत उनको मतदान कर, जो मत के विपरीत।
जनता आँसू पी रही, नेता गाये गीत।।

17
राजनीति में है वही, जिसकी प्रतिभा न्यून।
नेता वह बनता रहा, जो तोड़े कानून।।

18
ये अपराधों की दफा, जिसे रही है घेर।
वही सदन तक जायगा, गजब समय का फेर।।

19
भगत सुमित्तर का कथन, सुनिये मन चित लाय।
आग लगाने के लिए, मत बन दियासलाय।।

20
दुख के दिन जाते नहीं, ये अंगद के पाँव।
दुख में केवल आग है, नहीं वृक्ष की छाँव।।