भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खरोंचें कभी पोंछी नहीं जाती / सांवर दइया

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:47, 2 जुलाई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>बच्चे स्लेट पर कुछ लिखकर पानी से पोंछ देते हैं एक-सा सुख है उनक…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बच्चे स्लेट पर कुछ लिखकर
पानी से पोंछ देते हैं

एक-सा सुख है उनके लिए
लिख-लिखकर पोंछना
पोंछ-पोंछ कर लिखना

हम अपनी लिखी इबारतों को
पोंछ ही नहीं पाते
दरअसल हम लिखते कहां
           खरोंचते हैं
और खरोंचें कभी पोंछी नहीं जाती !