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ख़तरा प्रेम से / प्रतिभा कटियार

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किस कदर उलझे रहते हैं
वे एक-दूसरे में,
किस कदर तेज़ चलती है
उनकी साँसें
किस कदर बेफ़िक्र हैं
वे दुनिया के हर ख़ौफ़ से
कि दुनिया को उनसे
ही लगने लगा है डर,
कि उन पर ही लगी हैं
सबकी निगाहें
वे कोई आतंकवादी नहीं,
न ही सभ्यताओं के
हैं दुश्मन
न उनके दिमाग में है
कोई षड़यंत्र
फिर भी दुनिया को लग रहा
उनसे डर ।