भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़याल / सुधा ओम ढींगरा

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:03, 17 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधा ओम ढींगरा }} <poem> तेरे ख़यालों से यह महसूस हो...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तेरे ख़यालों से
यह महसूस होता रहा
जैसे
व्यक्तित्व मेरा
भीतर से कुछ खोता रहा.

समय की धूल को
जब झाड़ा तो,
दर्द की
ऐसी टीस उठी
और
एक आँसू
भोर तक आँख धोता रहा.

न ढलका,
न लुढ़का,
मगर जाने क्यों
दिल इन मोतियों की
माला पिरोता रहा.

तेरे ख़यालों से
यह महसूस होता रहा
जैसे
व्यक्तित्व मेरा
भीतर से कुछ खोता रहा.

उपवन खिल उठा
जब बहार आई,
बाग़वान बस
मेरे लिए कांटे
बोता रहा.

घायल रूह
और
छलनी जिस्म लिए
उम्र भर अस्तित्व,
घुट-घुट कर रोता रहा.