Last modified on 10 जुलाई 2011, at 00:31

ख़ानाबदोश लड़कियां / शहंशाह आलम

सारा शहर प्रतीक्षारत था कि
ख़ानाबदोश लड़कियां लौटेंगी
नए तमाशे दिखाएंगी
नए मंज़र रचेंगी सवेरे-सवेरे

शहर में दिन अच्छे थे
धूप भी रोज़ निकल रही थी
आंखों में ख़ूबसूरत ख़्वाब भी
झलक रहे थे
फिल्म देखकर लौट रहीं लड़कियों की
वनों की तरफ जाते नौउम्र लड़कों की

कस्तूरी-सी महकने वाली
ख़ानाबदोश लड़कियां नहीं लौटीं
इस वसंत में इस शहर

जिसका कोई देश न हो
वो क्यों लौटकर आएंगी
फिर-फिर आपके देश।