भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़ुदग़रज़ / फ़राज़

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:39, 25 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
ख़ुदग़रज़<ref>स्वार्थी</ref>

ऐ दिल! अपने दर्द के कारन तू क्या-क्या बेताब<ref>व्याकुल</ref>रहा
दिन के हंगामों<ref>कोलाहल</ref>में डूबा रातों को बेख़्वाब<ref>जागता हुआ</ref> रहा
लेकिन तेरे ज़ख़्म का मरहम तेरे लिए नायाब<ref>दुर्लभ,अप्राप्य</ref> रहा

फिर इक अनजानी सूरत ने तेरे दुख के गीत सुने
अपनी सुन्दरता की की किरनों से चाहत के ख़्वाब<ref>स्वप्न</ref>बुने
ख़ुद काँटॊं की बाढ़ से गुज़री तेरी राहों में फूल चुने

ऐ दिल जिसने तेरी महरूमी <ref>निराशा,वंचितता</ref>के दाग़ को धोया था
आज उसकी आँखें पुरनम<ref>भीगी हुईं</ref>थीं और तू सोच में खोया थ
देख पराए दुख की ख़ातिर<ref>के लिए,कारण</ref>तू भी कभी यूँ रोया था?

शब्दार्थ
<references/>