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ख़ुदा गर चाहता है हर बशर दौड़ा चला आये / डी. एम. मिश्र

ख़ुदा गर चाहता है हर बशर दौड़ा चला आये
तेा मेरी भी यही ज़िद है कि मेरे घर ख़ुदा आये

किसी से प्यार इकतरफ़ा हमें करना नहीं आता
बराबर प्यार हो दोनों तरफ़ तब तो मज़ा आये

उन्हें भी प्यार हम से है यक़ीं तब तो करें यारो
हमारे पास उनके हाथ का जब ख़त लिखा आये

बताओ दूसरा भी रोग कैसे पाल ले कोई
लगा पहले से है जो रोग उसकी तो दवा आये

करोड़ों लोग यूँ तो रोज़ साँसें गिन रहे अपनी
मगर ज़िंदा हूँ वही है जिसको जीने की कला आये