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ख़ुद को तुम मेरी कायनात कहो / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'


ख़ुद को तुम मेरी कायनात कहो
दिल को जो छूले ऐसी बात कहो

आज मौसम की पहली बारिश में
तन्हा कैसे कटेगी रात कहो

पास बैठो कभी तो पहलू में
कुछ हमारी कुछ अपनी बात कहो

आज वो बेनक़ाब निकले हैं
आज की रात चाँद रात कहो

हो गया होगा रो के दिल हल्का
ग़म से क्या मिल गयी नजात कहो

ज़िन्दगी में कहाँ सुकूने-दिल
मौत को राहते-हयात कहो

ख़ाक हासिद हुआ है जल के 'रक़ीब'
किसने खाई है किससे मात कहो