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ख़ुद से इतनी दरिन्दगी क्या है / राम मेश्राम

ख़ुद से इतनी दरिन्दगी क्या है
हाय-हत्या की ज़िन्दगी क्या है

क्या दिखावा करें अकीदत क्या
दिल में होती है, बन्दगी क्या है

झूठ यह है कि है ज़माने में
अपने भीतर है गन्दगी क्या है

रूप सोलह सिंगार का बेकार
दिल हिलाती है सादगी क्या है

हमने पहनी है, ख़ुद-ब-ख़ुद ज़ंज़ीर
शौक में नापसन्दगी क्या है