भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़ुद से ख़िलाफ़त / राजेश चड्ढ़ा

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:36, 19 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेश चड्ढ़ा |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem>यूं ही-बस बेख़य…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यूं ही-बस
बेख़याली में,
किसी अपने को-
सच्ची बात
कह कर,
जब पराया
कर लिया मैंने,
उसी दिन से
ख़िलाफ़त-
ख़ुद की
करता हूं।
मैं क़िस्से
रोज़
गढ़ता हूं।
मौहब्बत
लिख के,
चेहरे पर-
मौहब्बत
को ही
पढ़ता हूं