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ख़ुशफ़हमियां मानकर दिल मुस्कुराए भी नहीं / पूजा श्रीवास्तव

ख़ुशफ़हमियां मानकर दिल मुस्कुराए भी नहीं?
आहटें आती हैं बेशक आप आए भी नहीं

दिल नहीं है आपके सीने में इक दरबार है
ठीक ही तो है कोई क्या आए जाए भी नहीं

गैर की पलकों से जाने कब पनाहें माँग लें
जानकर ही आँख ने सपने सजाए भी नहीं

कुछ नए चेहरों की खातिर शाख से बिछड़े हुए
चाहते थे जो परिंदे लौट पाए भी नहीं

ऐ ज़माने तुझको दुनियादारी के सिर की कसम
तू नहीं तू गर मुहब्बत आज़माए भी नहीं

ज़िम्मेदारी दूरियों लाचारियों से हारकर
खैर हम कैसे बुलाते वो तो आए भी नहीं

हौंसलों के पर कतर कर देख लेना मुश्किलों
हौंसला क्या वो जो फिर तुझको झुकाए भी नहीं

भूल जाने की क़वायद उम्र भर चलती रही
और उसको उम्र भर हम भूल पाए भी नहीं

रात आधी चाँद पूरा और शबे रानाइयाँ
ये मेरे अहवाले दिल पर कसमसाए भी नहीं