भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़ुशी मिलत तौ उमर बढ़त है / महेश कटारे सुगम
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:09, 11 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश कटारे सुगम |अनुवादक= |संग्रह= ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
ख़ुशी मिलत तौ उमर बढ़त है
दुखी आदमी वेग मरत है
जोंन आदमी मन कौ कारौ
खूबई बौई सजत सँवरत है
जी की अच्छी नज़र होत है
वौ अच्छौ-अच्छौ देखत है
भादों में जो आँखें फूटें
फिर तौ हरौ-हरौ सूझत है
घाव देत जब अपनौ कौनऊं
हलकौ घाव भौत कसकत है
सुगम सुभाव होत है जैसौ
वौ सबखौं ऊसौ समझत है