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ख़ुशी है सब को कि आप्रेशन में ख़ूब नश्तर चल रहा है / अकबर इलाहाबादी

ख़ुशी है सब को कि आप्रेशन में ख़ूब नश्तर<ref>चाकू, काँटा</ref> चल रहा है
किसी को इसकी ख़बर नहीं है मरीज़ का दम निकल रहा है

फ़ना<ref>लुप्त हो जाना</ref> उसी रंग पर है क़ायम, फ़लक वही चाल चल रहा है
शिकस्ता-ओ-मुन्तशिर<ref>टूटा हुआ और बिखरा हुआ</ref> है वह कल, जो आज साँचे में ढल रहा है

यह देखते ही जो कासये-सर<ref>सर का प्याला</ref>, गुरूरे-ग़फ़लत<ref>अज्ञान का घमण्ड</ref> से कल था ममलू<ref>भरा हुआ</ref>
यही बदन नाज़ से पला था जो आज मिट्टी में गल रहा है

समझ हो जिसकी बलीग़<ref>अर्थपूर्ण</ref> समझे, नज़र हो जिसकी वसीअ<ref>फैला हुआ</ref> देखे
अभी तक ख़ाक भी उड़ेगी जहाँ यह क़ुल्जुम<ref>समुद्र</ref> उबल रहा है

कहाँ का शर्क़ी<ref>पूर्वी</ref> कहाँ का ग़र्बी<ref>पश्चिमी</ref> तमाम दुख-सुख है यह मसावी<ref>बराबर क़ौम का उत्थान और पतन</ref>
यहाँ भी एक बामुराद ख़ुश है, वहाँ भी एक ग़म से जल रहा है

उरूजे-क़ौमी ज़वाले-क़ौमी, ख़ुदा की कुदरत के हैं करिश्मे
हमेशा रद्द-ओ-बदल के अन्दर यह अम्र पोलिटिकल रहा है

मज़ा है स्पीच का डिनर में, ख़बर यह छपती है पॉनियर में
फ़लक की गर्दिश<ref>आसमान का चक्कर या फेरा</ref> के साथ ही साथ काम यारों का चल रहा है

शब्दार्थ
<references/>