भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़ेमा-ए-ख़्वाब की तनाबें खोल / रफ़ीक़ संदेलवी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:32, 7 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रफ़ीक़ संदेलवी }} {{KKCatGhazal}} <poem> ख़ेमा-ए-...' के साथ नया पन्ना बनाया)
ख़ेमा-ए-ख़्वाब की तनाबें खोल
क़ाफ़िला जा चुका है आँखें खोल
ऐ ज़मीं मेरा ख़ैर-मक़्दम कर
तेरा बेटा हूँ अपनी बाँहें खोल
डूब जाएँ न फूल की नब्ज़ें
ऐ ख़ुदा मौसमों की साँसें खोल
फ़ाश कर भेद दो-जहानों के
मुझ पे सर-बस्ता काएनातें खोल
पड़ न जाए नगर में रस्म-ए-सुकूत
क़ुफ़्ल-ए-लब तोड़ दे ज़बानें खोल