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ख़ेमा-ए-याद / हसन 'नईम'

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उस सुब्ह जब कि मेहर
दरख़्शां है चार-सू
मौसम बहार का है
ग़ज़ल-ख़्वाँ हैं सब तुयूर
सब्ज़े सबा के लम्स से ख़ुश हैं निहाल हैं
इक साया इस दरख़्त इसी शाख़ के तले
तन्हाइयों की रूत में है मग़्मूम ओ मुज़्तरिब
बंद-ए-क़बा-ए-शब से उलझता है बार बार