भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़्वाब थे मेरे कुछ सुहाने से / शोभा कुक्कल

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:10, 30 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शोभा कुक्कल |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> ख़...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख़्वाब थे मेरे कुछ सुहाने से,
आपको क्या मिला मिटाने से।

राहे-हक़ पर जो लोग चलते हैं,
ख़ौफ़ खाते नहीं ज़माने से।

हमको दिल का सुकून मिलता है,
फाका-मस्तों को कुछ खिलाने से।

बद्दुआ मत गरीब की लेना,
बाज रहना उसे सताने से।

बन के आते हैं कैसे कैसे लोग
ऐ खुदा तेरे कारखाने से।

मुस्कुराते रहो खुदा के लिए
फूल झड़ते हैं मुस्कुराने से।

उन से मिलती हूँ मैं अदब के साथ,
लोग मिलते हैं जब पुराने से।

कह के अच्छी ग़ज़ल भी ऐ शोभा
डरती हो किस लिए सुनाने से।