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"खिड़की को देखूँ कभी / अभिषेक कुमार अम्बर" के अवतरणों में अंतर

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खिड़की को देखूँ कभी,कभी घड़ी की ओर,
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खिड़की को देखूँ कभी, कभी घड़ी की ओर,
नींद हमें आती नहीं ,कब होगी अब भोर।
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नींद हमें आती नहीं, कब होगी अब भोर।
कब होगी अब भोर ,खेलने हमको जाना,
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कब होगी अब भोरखेलने हमको जाना,
 
मारें चौक्के छक्के, हवा में गेंद उड़ाना।
 
मारें चौक्के छक्के, हवा में गेंद उड़ाना।
 
कह 'अम्बर' कविराय,पड़ोसन हम पर भड़की।
 
कह 'अम्बर' कविराय,पड़ोसन हम पर भड़की।
जोर जोर चिल्लाये ,देखकर टूटी खिड़की।
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जोर जोर चिल्लाये,देखकर टूटी खिड़की।
 
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(कुण्डलिया छंद)
 
(कुण्डलिया छंद)
 
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11:14, 23 जनवरी 2020 का अवतरण

खिड़की को देखूँ कभी, कभी घड़ी की ओर,
नींद हमें आती नहीं, कब होगी अब भोर।
कब होगी अब भोरखेलने हमको जाना,
मारें चौक्के छक्के, हवा में गेंद उड़ाना।
कह 'अम्बर' कविराय,पड़ोसन हम पर भड़की।
जोर जोर चिल्लाये,देखकर टूटी खिड़की।
 
(कुण्डलिया छंद)