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खिली थी, झर गई बेला / देवेन्द्र कुमार

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खिली थी
झर गई बेला ।

तुम्हारे प्यार के पाँवों पड़ी
अब तर गई बेला
खिली थी
झर गई बेला ।

हवा का
लाँघकर चौखट चले आना,
रोशनी का
अन्धेरे में फफकना,
फूटकर बहना
पड़ा रहना
बिला जाना

बताता है
कि किन मजबूरियों में
मर गई बेला
खिली थी
झर गई बेला ।