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खिलौना / श्रीनाथ सिंह

एक खिलौना घर से इकला,
सैर जगत की करने निकला
छाया मिली उसे चमकाया,
देखा दुःख - उसे छलकाया

मिली उदासी, उसको खोला,
उसमे थोड़ा मीठा घोला।
क्रोधी मिला, उसे दिखलाया,
जो था उसमे दोष समाया।

भेंट किया रोते नैनों से,
भरा उन्हें सुख के सैनों से
देख दुखी मुख, उसमें छोड़ा,
मीठा एक हंसी का रोड़ा।
कोई दुखिया मिला अकेला,
साथ उसी के छण भर खेला
बड़े बड़े कामों का निकला,
चला खिलौना जो था इकला