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खिल उठते हैं फूल / सरस्वती माथुर

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चिरैया वाह!
सुबह की
अंगड़ाई के साथ ह़ी
कुनमुनाती तुम भी
उठ जाती हो
चहकती हो
पेड़ों के इर्द गिर्द
फुदकती हो
तोड़ती हो रात के
पसरे सन्नाटे को
तुम्हारी तान से
खिल उठते हैं
फूल सो जाते है
रात के चौकीदार
झिलमिलाते तारे और
तुम्हारे गीतों की प्यास
सोख लेती है
हमारे दिलों का समुंदर!