भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खुद पे गुज़रे अज़ाब लिखती हूँ / सुमन ढींगरा दुग्गल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:36, 23 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमन ढींगरा दुग्गल |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


खुद पर गुज़रे अज़ाब लिखती हूँ
आज कर के हिसाब लिखती हूँ

बहर ए दिल में है इक सन्नाटा
और मैं इज़्तिराब लिखती हूँ

खुद को ज़र्रे से मुख़्तसर कर के
आप को आफ़ताब लिखती हूँ

जब कोई फूल मुस्कुराता है
उस को अपना शबाब लिखती हूँ

नाज़ कर कर के आज कल खुद को
आपका इंतिख़ाब लिखती हूँ

मेरी अच्छाई की सनद ये है
खुद को सबसे ख़राब लिखती हूँ

उन को कोई सुमन लिखे कुछ भी
मैं ख़ुदा की किताब लिखती हूँ